गौरेला पेंड्रा मरवाही। अखंड मनोकामना ज्योति कलश प्रज्वल तेरे साथ ही घट स्थापना सोढाक मंत्र का चित्र योगिनी क्षेत्रपाल समस्त देवी देवताओं की पूजा की स्थापना के साथ वैदिक विधि विधान के साथ 9 दिन और विविध अनुष्ठान किए जाएंगे लिफ्ट यज्ञ हवन एवं नौचंदी का पाठ किया जाएगा के साथ ही मां भगवती के फलों के रस एवं पंचामृत एवं औषधीय से किया जाएगा अभिषेकचैत्र नवरात्रि हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होता है। यह पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है।
1. धार्मिक महत्व
इस दौरान माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है—शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री।
यह आत्मशुद्धि, साधना और भक्ति का पर्व है, जिसमें उपवास, हवन और जागरण किए जाते हैं।
राम नवमी भी इसी दौरान आती है, जिससे इसका महत्व और बढ़ जाता है।
2. आध्यात्मिक महत्व
यह आत्मशुद्धि और शक्ति प्राप्ति का अवसर होता है।
ध्यान, साधना और उपवास के माध्यम से मन को संयमित किया जाता है।
भक्तों को सकारात्मक ऊर्जा और मानसिक शांति प्राप्त होती है।
3. सांस्कृतिक एवं सामाजिक महत्व
भारत में इसे अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न तरीके से मनाया जाता है।
इस दौरान रामायण पाठ, कीर्तन और धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं।
घरों और मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
4. वैज्ञानिक दृष्टिकोण
यह मौसम परिवर्तन का समय होता है, जब शरीर को अंदर से शुद्ध करने की आवश्यकता होती है।
उपवास रखने से पाचन तंत्र को विश्राम मिलता है और शरीर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
चैत्र नवरात्रि केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि मानसिक और शारीरिक शुद्धि का भी पर्व है। यह आत्म-संयम, भक्ति और ऊर्जा का स्रोत बनकर जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जाने में सहायक होता है।
Post a Comment