नरेंद्र अरोड़ा--
‘जादूगरी सिर्फ कला के माध्यम से मन के सम्मोहक उॅंचाईयों को छूने वाली ही नहीं वरण जादू एक साधना है। जिस प्रकार एक बच्चे को अपनी मां से अगाध प्रेम रहता है, और मां को अपने बच्चे से उसी प्रकार जादू मेरी जान है, मेरी जिन्दगी है। मेरा जीवन मरण सब कुछ जादू है।’
ये अल्फाज है शहर में प्रदर्शन को आये विश्वकिर्तिमानों को स्थापित करते जादूगर गोगीया सरकार की, जो उन्होंने अपनी एक विशेष भेंट में कही। प्रसिद्ध जादूगर गोगीया सरकार के जादुई शो को देखते हुए दर्शक आनंद विभोर हो, सात्विक आनंद प्राप्त करते अपनी चिन्ताओं, हताशाओं को भूल जीवन के अगले संघर्ष के लिए उनका मन उमंग से लबरेज रहता है। यह जादूगर गोगीया सरकार से जादुई उपलब्धियों को सामाजिक स्वरूप है। देश में प्रदेश दर प्रदेश, शहर दर शहर अपने जादुई परचम को फहराते, जादू की नयी-नयी बुलन्दियों को छुते हुए जादूगर गोगीया सरकार दम तोड़ती भारतीय जादू कला को अपने अनुसंधानों तथा प्रयोगो द्वारा नीत नये-नये जादुई खेलों को जोड़ते भारतीय जादू कला को नया जीवन देते हुए दर्शकों को सुकुन देने का सफल प्रयास कर रहे है, खेडिया टॉकीज, मनेंद्रगढ़ में चल रहा इनकी जादुकला का प्रदर्शन अब कुछ ही दिन शेष रह गया है। बहुत ही जल्द अब इनका कार्यक्रम मनेंद्रगढ़ से समाप्त होकर दूसरे शहर के लिए प्रस्थान करने जा रहे है। मनेंद्रगढ़ में ये अपनी जादूकला का प्रदर्शन रोजाना 3 शो में कर रहे है। पहला शो 3 बजे से, दूसरा शो 5 बजे से, एवं तीसरा शो संध्या 7 बजे से। जहॉं आज लोग मुस्कुराना भुल रहे है। शहरवासियों को अपने अद्भूत जादुई प्रदर्शनों में देश में पहली बार अविस्कृत एवं पूर्णतः भारतीय जादुई खेलों में गोगीया सरकार जिन्दा लड़की को नुकीले लोहे के रॉड पर सुलाते है। देखते-देखते वह रॉड जादुई सुन्दरी के पीठ को भेदते हुए पेट के आर-पार हो जाता है। लोहे के रॉड पर से झुलती लड़की को उतारा जाता है, जादूगर गोगीया अपना जादुई पास देते है और देखते ही देखते सुन्दरी मुस्कुराती हुई दर्शकों का अभिवादन करती दिखती है। दर्शक तब और आष्चर्य चकित होते है जब जादूगर गोगीया एक जादुई सुन्दरी को दर्शक के सामने एक छोटे से बाक्स में बन्द करते है और उस बाक्स से लड़की का शरीर गायब हो जाता है और उसके उपर का सिर तथा नीचे पैर जिन्दा साबूत रहते है। बाक्स के उपर सिर और नीचे पैर को छोड़ उस जादुई सुन्दरी के शरीर का गायब होना जादू जगत का नया जादुई नमूना है। जिसे गोगीया सरकार शहर के दर्शकों के बीच पहली बार दिखाते हुए, जादूगर के पंक्ति में अगली कतार में आ खड़े हुए है। इन रोमांचक और रोंगटे खड़े कर देने वाले खेलों के बाद जब जादूगर गोगीया सरकार एक दर्शक को बुलाकर उसी के सर पर आग जला चाय बनाते है और जादुई ढंग से बनी उस चाय को उसी दर्शक को देते हुए कहते है कि यह गोगीयापैथ है तो हॉल में बैठे दर्शक एक बारगी रहस्य रोमांच की दुनिया से कहकहों की दुनिया में पहॅुंच जाते है। खास कर उस समय दर्शक और भी आह्लादित होते है जब एक बदमाश लड़के को ठोक-ठोककर छोटा बौना लड़का बना कर उसे सजा देते है। दर्शक उस समय हंसते-हंसते लोट-पोट हो जाते है जब दर्शक के बीच से आया छोटा बच्चा जादुई दूध पीता है, और जादूगर गोगीया पुनः दूध को उस लड़के के विभिन्न अंगों से बाहर निकाल देते है। जिन्दा लड़की का सर काटकर दूर टेबूल पर रख देना दर्शक के सामने आष्चर्य कि धड़ और सर दोनों जिन्दा। इसे देख जहॉं दर्शक दॉंतों तले अंगुलियॉं चबाने को मजबुर हैं। वहीं नये-नये कॉमेडी जादुई आइटम के साथ गोगीया सरकार जब अपना इन्द्रधनुषी इन्द्रजाल मंच पर बिखेरते है तो दर्शक अपना सुध-बुध खो कर बस जादूगर गोगीया सरकार के होकर ही रह जाते है। इस लुप्त होती कला को विकसित, पल्लवित एवं पुष्पित करने की दिशा की ओर निरन्तर अग्रसर जादूगर गोगीया सरकार कहते है कि आज के संस्कार विहीन कलाओं के बीच एक मात्र जादू ही ऐसी कला है जिसका आनन्द परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठकर उठा सकते है। आगे वे कहते है कि जादू में सभी कलाओं का समावेश है तभी तो इसे ‘‘कलाओं की कला’’ कहा गया है। आपको इसमें वह सब मिलेगा जो आज के युवा वर्ग के मानसिक विकास के लिए आवष्यक है। बातचित के क्रम में वे आगे कहते है कि जादू में विज्ञान, पेंटिंग, योग, म्युजिक, एक्टिंग, हास्य-व्यंग, चातुर्य सब का समावेश रहता है। जादू क्या है? पूछने पर जादूगर गोगीया सरकार कहते है कि कोई भी कला जब अपनी चरम पराकाष्ठा पर पहॅूंचती है तो उसका प्रभाव जादूमय हो जाता है। यही जादू की सार्थकता भी है। यह कला हिन्दुस्तान की धरोहर रही है। जो रामायण-महाभारत में वर्णित होने के साथ-साथ आदि काल से चली आ रही है। सच में जादू विज्ञान, आध्यात्म एवं योगपूर्ण सम्मोहन का मिश्रण है। जादू की सम्मोहक दुनिया में हम ज्यो-ज्यों प्रवेश करते है, हमें लगता है हम सब इसमें डूबते चले जा रहे है। बड़ी ही विचित्र है यह दुनिया और इसके जादूगर। अन्ततः इस अन्तहीन कला को आत्मसात करने और युवा वर्ग को संदेश देते वे कहते है ‘‘महापुरूषों ने उॅंचाइयॉं छुई है न केवल एक प्रयास में, जब उनके साथी सोचा करते थे, वे संघर्ष करते थे रात में।’’
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